Thursday 16 February 2012

धक्का- थोड़ा बचा के!!!!!

मयूर विहार स्थित डेलीकेसी से अपने लिए वेज और बाकी रूममेट्स के लिए नॉन-वेज खाना ले के कोल्ड ड्रिंक लेने के लिए जा हिं रहा था की पीछे से आवाज़ आई धड़ाम!!! तुरंत भीड़ भी जुट गयी. मेरे जर्नलिसटिया दिमाग या यूँ कहिये की रुझान ने तुरंत कहा छोड़ो कोल्ड ड्रिंक को- देखो भीड़ को. आनन फानन में मै भी पहुँच गया मौके पे. एक ही बाइक पे सवार तीन नवयुवको ने एक कार को धक्का मार दिया था और खुद भी गिर पड़े!!!

उनमे से दो तो भागने में सफल रहा पर तीसर धरा गया, संभवतः उसीकी बाइक थी. अब चूँकि बोतले दोनों तरफ खुली थी गाड़ी चलने से पहले तो टेंशन होना लाज़मी था! 

अब बाइक और कार में ज्यादा रसूक वाला कौन है ये तय करना मुश्किल नहीं है इसीलिए ये अंदाज़ा लगाना भी बहुत मुश्किल नहीं होना चाहिए की कौन पीट रहा होगा और कौन पिट रहा होगा. पांच छः घुस्से और संभवतः उतने ही थप्पड़ खाने के बाद आखिरी बाइक सवार भी भागने में कामयाब रहा. 


जिन कार वाले सज्जन के अभिमान पे स्क्रैच आया था(अभिमान पे इसलिए क्यूंकि उनकी गाड़ी को ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ था)  उनके मित्र के पास एक चाकू भी था जिससे उन्होंने बाइक के टायर फाड़ डाले. अब धीरे धीरे भीड़ को भी मज़ा आने लगा था. अभी अभी भीड़ का हिस्सा बने एक नवयुवक ने अपनी स्कूटी बगल में खड़ी  करी और मौके के नज़ाकत को बखूबी समझते हुए- पहले से विकृत हो चुकी बाइक को अपनी पूरी क्षमता से उठाते हुए बाकी काम गुरुत्वाकर्षण पे छोड़ दिया.


चूँकि मेरे पास बाइक नहीं है वरना तकनिकी रूप से सटीकतापूर्वक बता पाता कहाँ कहाँ के शीशे टूटे और रिपेयर कराने में कितना खर्च आएगा लेकिन हाँ जहाँ जहाँ शीशे होते हैं वहां मोटर मिस्तिरी अब अपना खर्चा निकाल लेगा.


उधर चार कदम के दूरी पे दो युवक अपने तीसरे मित्र को समझा रहे हैं की तू क्यूँ बीच में पड़ रहा है? और जो सफाई उनका मित्र दे रहा था की 'यार सभी मिल के उस बन्दे को मार रहे थे' उसे वो दिल्ली की रित की दुहाई देकर टाल गए और उसे ठण्ड रखने की सलाह देते हुए वहां से ले गए. बात ये हुई थी की उनके मित्र की इंसानियत थोड़ी जग गयी थी और वो उस बाईक सवार को पिटता नहीं देख पा रहे थे इसलिए कार वाले सज्जन को उसे छोड़ देने की सलाह दे डाली,नतीजतन उन्हें काफी ज़िल्लत सहनी पड़ी थी.


वहीँ सड़क के उस पार एक रेस्टुरेंट भी था  जहन के मालिक भी आ पहुंचे और बात को सँभालने की कोशिश करने लगे जब उन्होंने बिच बचाव करने की कोशिश करी तो कार वाले सज्जन ने कहा 'अंकल आप नहीं जानते अभी इसको मरवा सकते हैं, कुछ ही दिनों पहले तो मेट्रो स्टेशन के बाहर गोली चलवाई थी'.
उधर बीच में से फिर किसी ने मध्यस्तता करने की कोशिश करी तो उसे इस सवाल ने दुबारा कुछ कहने से रोक दिया की- 'भाई तू है कौन'?


कार वाले सज्जन के एक मित्र ने सलाह दे डाला की पुलीस को बुलवा लो!! लेकिन रेस्टुरेंट वाले चाचा और अपने मित्रो के आपसी सलाह के बाद सज्जन ने भी बात को ख़त्म करने में ही विद्वता समझी.
इतने में पहले पिट चुके बाइक वाले की री-एंट्री हुई और एक पल में सारी विद्वता जाती रही और फिर से दन-दन. इस बार बेचारा अपनी बाइक को छुरवाने आया था. दोनों हाथ जोड़े हुए जब वो क्षमा याचना कर रहा था तो नेताओ की याद आ गयी जब वो वोट-याचना पे आते हैं और हाथ जोड़े खड़े होते हैं की पता नहीं वोटर कब बिदक जाए......


खैर दम भर पीटने के बाद और बिच- बचाव के बाद बाईक वाले को कार वाले सज्जनों ने मुक्ति दे दी. भीड़ भी छटने लगी. स्कूटी वाले भैय्या भी पुरे ताकत से एक्सेलेरेटर को ऐठ के लहरिया कट मरते हुए हवा से बाते करने लगे.


किसी को खाने वक़्त होने वाले चर्चा के लिए रोचक विषय मिला तो फांकिबाज क्षात्रो  को अगले दिन दोस्तों में किस्सा सुनाने का मसाला मिला, मेरे जैसे कुछ को लिखने को कुछ मिल गया.


लेकिन इस व्यंग्य के साथ शायद सोचने के लिए भी बहुत कुछ रह गया. जैसे-


जो गोली चला सकता है वही पुलीस को इतनी जल्दी बुलाने में सक्षम क्यों है?


स्कूटी वाले भैय्या ने जिस अपराध के लिए बाइक उठा के पटका उसके बाद क्या वो लहरियाकट मारने के लिए एलिजीबल हैं?


उन तीन मित्रो के बीच में सही कौन था और दिल्ली कितना दोषी है व्यक्तिगत स्वभाव के लिए?


अंत में बाकी दो मित्र भी आये और कांच को समेटते हुए आगे किसी भी घटना में साथ निभाने का वादा करते हुए चलते बने.


कार वाले सज्जन औए बाइक वाले के बिच सही कौन गलत कौन के चुनाव से मैंने अपने आपको मुक्त रखना ही बेहतर समझा है.


अब मुझे कोई इस बात का दोष न दे की मैंने कुछ किया क्यूँ नहीं बीच बचाव करने के लिए, क्यूंकि एक बड़े संपादक की लाइन मेरे मन में घर कर गयी है की अगर सब  कुछ पत्रकार ही करेगा तो खबर कौन देगा?

12 comments:

  1. A well narrated and gripping write up, in a country where one boasts of being home to the oldest and richest culture, the lack of basic human values is nothing less than disturbing.

    Honestly expressing there is not much that I felt in this context, such incidents have been instilled into our daily lives to the extent to creeping into the obvious.

    I believe the need for a social awakening is the need of the hour, we have misconstrued, mismanaged and minced the human within us.

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  2. The write-up is strong and the narration of the entire story does manage to invoke inquisitiveness. The light worded article has skillfully managed to raise critical questions related to the realm of ethics and how to resolve disputes via dialogue. Keep up the good work Prashant.

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  3. bahut ache bhaiya.
    sachai toh yahi hai...lekin sambhavtah joh maine ek baat notice ki woh the "DOST".

    Ek taraf DOST khisak gaya aur ek taraf Motivate kia...

    Toh samjhane ki baat yeh hai ki hum kaise logo ke saath rehte hai naki dusro ka swabhav kaisa hai..

    HARDEST THING IN THE WORLD TO CHANGE OTHERS BUT ATLEAST WE CAN CHANGE OURSELVES. ;)

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  4. A way-out writing...And the way u've penned down an abashful incident with jocular possibilities is commendable..:)

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  5. dekhiye kehna to hum kuch nahi chahte , hamesha ki tarah aap ki hindi to bemisaal hai but just to participate........ kyu participation to amar hai na...

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  6. well written.....n creative enuf 2 justify d role of a journalist....nycc work

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  7. this shows that u have gud creative power.....gud job....:))

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  8. aapne is ghatna ka varnan bht hi bakhubi kiya...jisse aam logon ki mansikta bhi ubhar kar a rhi hai

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  9. a sharp satire out of a very minute instance...thought provoking..it did hit its mark well..kudos!

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  10. narrated in a fantastic way!! awesome!!

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  11. aap sabhi ka bht bht shukriya....

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