Saturday 2 June 2012

ऊपर से

हमारे मोहल्ले में बिजली की बड़ी दिक्कत थी.  और गर्मियों में तो बस पूछिये ही मत . हफ़्ते में 1 बार तो टोली बना के गर्दनिबाग  बिजली ऑफिस  जाना हो ही जाता था हम पड़ोसियों  का.हमारे पूछने पे  कि  क्या गड़बड़ी है, एक ही जवाब  मिलता था की ऊपर से ही खराब है. हमलोग आज तक उस ऊपर तक नहीं पहुंच पाए की हमारी बाते सुनी जा सके. 
जन वितरण प्रणाली की दुकानों में भी मैंने अक्सर यह गौर किया है की अगर कोई यह पूछे की इस बार गेहूं या चावल कम क्यूँ दिया जा रहा है तो जवाब आता है की ऊपर से ही कम आया है.  अगर किसी भी उत्पाद के प्रारूप में बदलाव आ जाता था और पूछो की ऐसा क्यूँ है तब भी यही सुनने को मिलता था की अब ऊपर से ही ऐसा आने लगा है.
लेकिन सबसे ज्यादा ये जो सुनने को मिलता था वो था खाद्य सामग्री के बढे हुए दामो में भैय्या चावल का दाम क्यूँ बढ़ गया इतना- क्या करियेगा उपरसे बढ़ गया है..
भैय्या सब्ज़ी इतनी महंगी- ऊपर से ही यही रेट मिल रहा है हमलोग क्या करें?????
दरअसल ये जो ऊपर से ही वाला टेकनिक है- हमारे देश में माध्यम वर्गीय ग्राहकों और उपभोक्ताओ को अँधेरे में रखने के लिए ज़बरदस्त रूप से इस्तेमाल हुआ है..
और हम भी इस जवाब को ऐसा मान चुके हैं की अगर कही से ये जवाब सुनने को मिले तो, हम बाध्य हो जाते मानने के लिए और सम्बंधित अधिकारी या संकाय भी सवालों के दायरे से परे हो जाता है.

खैर हाल के दिनों में हमारी बढती साक्षरता और जागरूकता के कारण इस टेकनिक का इस्तेमाल कम ज़रूर हुआ है लेकिन प्रभावी रूप से अभी अपने उत्पत्ति के स्तिथि में ही है.. बचपन में लगता था की 'ऊपर से' कोई इंसान है, जो बोल दिया फ़ाइनल  समझिये. धीरे धीरे पता चला की कितनी बार ठगे जा चुके हैं. 

आज देश में तेल की कीमते आस्मां छू रही हैं हम आप कुछ नहीं कर सकते हैं, क्या करियेगा ऊपर से ही बढ़ गया है.. दूध का दाम भी कुछ सालो में बहुत तेजी से बढ़ाया गया है ऊपर से. 
जब कभी ऊपर से आर्डर आता है तो नीचे तक के बाबू के पैर हाथ फूल जाते है, बात भी सही है उपर से जो आर्डर आया है.. किसी केस में जब ऊपर का बल परता है तो देखिएगा की असंख्य केस में से आपका मामला सबसे पहले कैसे हल हो जाता है..

हाल में इस शब्द से पाला तब परा जब इन्टरनेट ठीक करने के लिए जिसे कंपनी वालों ने घर पे भेजा था उसने भी अपनी लाचारी ये कह के दिखा दी की ऊपर से ही खराब है.. और फिर से मै निशब्द खड़ा था..

सब ऊपर का खेल है अपने यहाँ. मै तो आज तक नहीं जान पाया हूँ की ये ऊपर क्या है? 
 मालूम  नहीं कब देखने को मिलेगा ये 'ऊपर' जहां से तय होता है सब कुछ...
 फिर भी बहुत लोगों को कहते हुए सुनता हूँ 'मेरी पहुँच ऊपर तक है'.....