Saturday 29 December 2012

बदलाव


सरकार बदलने में समय लगेगा सत्ता बदलने में समय लगेगा कानून बदलने में समय लगता है।। लेकिन तब तक हम तो बदल सकते हैं हम मतलब मैं आप और हम से जुड़ा ये समाज।
बदलना होगा उस सोच को जो रात में देर से लौटने  वाली हर महिला का, अपने हिसाब के कपड़े पहनने वाली  हर महिला का, बाज़ार में अपने दोस्त का हाथ थाम चलने वाली हर महिला का चरित्र विश्लेषण चंद मिनटों में कर डालती है। बदलना होगा उस नज़र को जो राह चलती हर महिला का हर दिन नज़रों से बलात्कार करने के लिए काफी है। पता नहीं गलती कहाँ है संस्कार में या शिक्षा में।अगर संस्कार में तो हम आजतक किस संस्कृति की दुहाई देकर अपने भारतवर्ष का सामान करते आये हैं और अगर शिक्षा का  है तो क्यूँ शिक्षित तबके के मर्दों की नज़रों में भी वही हैवानियत छलकती है?
ये बात ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ हर रोज़ देखता हूँ सडको पर बाज़ार में आज भी देखा सड़क पे चल रही एक अकेली लड़की को मेरे पिता के उम्र के भद्रजन मेरे भैय्या के उम्र के युवा मेरे उम्र के लड़के और मुझसे छोटे भी सभी एक टक घूरे जा राहे थे फिर वो खुद को बहुत पढ़ा लिखा समझने वाला मैगज़ीन कॉर्नर पर प्रतियोगिता दर्पण खरीद रहा युवा हो या कचड़ा चुनने वाला ग़रीब। 
उस पुरुषवादी रवैय्ये को भी बदलना होगा जो महिला को बस विलास की वस्तु समझता है - गाने से लेकर सीमेंट के प्रचार तक जिस तरह महिलाओं को दर्शाया जाता है उस पर भी विचार ज़रूरी  है।
सभी के अपने सुझाव हैं अपने राय हैं लेकिन सबसे ज़रूरी है हम अपने आने वाले पीढ़ी को ऐसा समाज दें जिसमे महिलाओं की इज्ज़त  कैसे की जाती है इसकी तालीम सबसे पहले दी जाए, ना कि उन्हें घूरने की

बहुत कुछ लिखना है पता नहीं कैसे लिखूं ... थोड़ा तो बदला हूँ मैं थोड़ा आप भी बदलिए बस।।।